HISTORY OF KOHINOOR DIAMOND कोहिनूर हीरे का इतिहास
कूह-ए-नूर –कूह-ए-नूर फारसी का शब्द है जिसका अर्थ होता है –रोशनी का पर्वत I
कोहिनूर इसी शब्द का विकृत रूप है (इसी को
धीरे -2 कोहिनूर कह गया ) I कोहिनूर आज के
समय में 105.602 कैरट ( वजन 21.12 ग्राम) का हीरा है I यह कभी विश्व का
सबसे बड़ा ज्ञात हीरा था पर समय के साथ किए बद्लाबो ने कोहिनूर से इसकी ये उपाधी
छीन ली I कोहिनूर हीरा भारत की गोलकुंडा ( आंध्रप्रदेश ) स्थित खान से निकला गया था I ये कई भारतीय ,मुग़ल,फारसी
शासको के पास होता हुआ अन्तं में ब्रिटिश शासन के अधिकार में आया था I कोहिनूर
ब्रिटिश साम्राज्य में तब शामिल हुआ जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री बेन्जामिन डिजरायली
ने महारानी विक्टोरिया को 1877 ई. में भारत कि साम्रागी घोषित किया
I
कोहिनूर का इतिहास काफी उलझा हुआ रहा है इसके बारे में सबसे पहली जानकारी बाबर
द्वरा लिखी गई बाबरनामा में मिलती है इस
में लिखा है कि यह हीरा 1294 में मालवा के
किसी राजा के पास था और मालवा के राजा से यह हीरा अलाउद्दीन खिलजी ने जबरदस्ती
हासिल किया था और इसके बाद ये दिल्ली सल्तनत के उतराधिकारियो द्वरा आगे बढाया गया
अंततः 1526 में बाबर की जीत के साथ उसको प्राप्त हुआ था I इतिहास करो के काफी
विवाद के बाद यह निष्कर्ष निकला कि बाबर नामा में लिखा हीरा ही कोहिनूर हीरा
है I
यह हीरा पहले ग्वालियर के कछवाह शासको के पास था, जिनसे ये तोमर राजाओ के पास पंहुचा I अंतिम तोमर राजा को सिकंदर लोदी ने हराया और अपने साथ दिल्ली ले गया जहाँ उन्हें बंदी बना कर रखा I लोदी कि मुगलों से हार के बाद मुगलों ने उसकी सम्पति लूटी और हुमायु में मध्यस्थता करके तोमर रजा को उसकी सम्पति दिलवा दी और मेवाड़ ,चित्तोड में रहने भी दिया I हुमायूँ की इस भलाई के बदले तोमर राजा ने बहुमूल्य हीरा दिया था जो शायद कोहिनूर ही था I हुमायूँ के जरिये ही ये हीरा शाहजहाँ के खजाने में पंहुचा I
शाहजहाँ ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर सिंघासन तख़्त-ए-ताऊस में जड़वाया था I शाहजहाँ भी अपने पुत्र औरंगजेब के द्वारा तख्ता पलट कर बन्दी बनाया गया औरंगजेब ने अपने पिता को कद करके आगरा के किले में रखा था I यह भी कह जाता है कि उसने कोहिनूर हीरे को अपनी खिड़की के पास इस तरह रखा था कि उसके अंदर शाहजहाँ को ताजमहल का प्रतिविम्ब दिखाई दे I
मुगलों के पास कोहिनूर हीरा 1739 तक ही रहा I ईरानी शासक नादिरशाह ने 1739 में
भारत पे आक्रमण किया और दिल्ली,आगरा में भयंकर लूटपाट की वह मयूर सिंघासन, कोहिनूर
हीरा और अकूत सम्पति लूट कर अपने साथ फारस ले गया I इस हीरे को देख कर नादिरशाह के
मुह से अचानक कूह-ए-नूर (रोशनी का पर्वत ) शब्द निकला जिससे इसको अपना वर्तमान नाम
मिला है I
सन 1747 में नादिरशाह कि हत्या के बाद यह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के
हाथो में पंहुचा I 1830 में शाह शुजा अफगान का तत्कालीन पद्चुत (गद्दी छिनना) शासक
किसी तरह कोहिनूर के साथ बच निकला और पंजाब पंहुचा जहाँ उसने महाराजा रणजीत सिंह
को यह हीरा भेट किया I इसके बदले महाराजा रणजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी
टुकडिया भेज कर अफगान गद्दी जीत कर शाह शुजा को वापिस दिलाने के लिए तेयार कर लिया
I
1849 ई. में ब्रिटिश शासको द्वारा लाहौर को जीत लिया गया और पंजाब ब्रिटिश
भारत का भाग घोषित हुआ I जिसके बाद लाहौर
कि संधि हुई जिसका एक महत्बपूर्ण अंश इस
प्रकार है कि –कोहिनूर नामक हीरा जो
शाहशुजा-उल-मुल्क से महाराजा रणजीत सिंह द्वारा लिया गया था , लाहौर के महाराजा
द्वारा इंगलैंड कि महारानी को सौपा जायेगा
I
kohinoor diamond weight -कोहिनूर हीरे का वजन कितना है
ज्वेल्स ऑफ़ ब्रिटेन के अनुसार जब ये हीरा गोलकुंडा कि खान से निकला गया था तब
इसका बजन 787 कैरट था I पर ब्रिटिश शासन
तक पहुँचते–पहुँचते केवल 186 कैरट तक ही रह गया I महारानी विक्टोरिया के ज़ोहरी
प्रिंस एलवेट ने कोहिनूर कि पुनः कटाई की और पॉलिश करवाई I सन 1852 से आज तक इसका
वजन 105.6 कैरट ही रह गया है I
kohinoor diamond price-कोहिनूर हीरे का मूल्य
बाबर नामा में बाबर ने कोहिनूर के मूल्य का अनुमान लगाया है और लिखा है कि-यह
हीरा इतना महंगा हे कि इसको बेचने से प्राप्त धन से सरे संसार के लोगो को दो दिन
तक भोजन कराया जा सकता है I
कोहिनूर का मूल्यांकन नादिरशाह कि एक कहानी से भी मिलता है जहाँ उसकी रानी ने कहा था कि यदि कोई शक्तिशाली मानव पांच पत्थरों को चारो दिशाओ और उपर कि और पूरी शक्ति से फेके तो उनके बीच का खली स्थान यदि सोने व रत्नों से भरा जाये तो उनके बराबर इसकी कीमत होगी I
पर कहानियो से पर इसकी कीमत ज्वेल्स ऑफ़ ब्रिटन ने 1 बिलियन डॉलर से 2 बिलियन डॉलर तक आकी है I
--सन 1911 ई. में कोहिनूर महारानी मेरी के सरताज में जड़ा गया और आज भी उसी ताज में ही है जिसको
लन्दन स्थित “टावर ऑफ़ लन्दन” संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए रखा गया है I
0 Comments